उत्तराखंड को ईश्वर की धरती या देवभूमि के नाम से जाना जाता है। उत्तराखंड भारत के उत्तर में पहाड़ी राज्य है, जो पहले उत्तरांचल के नाम से जाना जाता था। दून वैली पर बसा देहरादून इसकी राजधानी है, जो चारों ओर से प्राकृतिक दृश्यों से घिरा हुआ है।
हिंदुओं की आस्था के प्रतीक चारधाम बद्रीनाथ, केदारनाथ, गंगोत्री और यमुनोत्री यहीं स्थित हैं। उत्तर का यह राज्य गंगा और यमुना समेत देश की प्रमुख नदियों का उद्गम स्थल भी है। उत्तराखंड फूलों की घाटी का भी घर है, जिसे यूनेस्को ने विश्व विरासत की सूची में शामिल किया है। आज हम आपको उत्तराखंड के प्रमुख धार्मिक स्थलों में शुमार बागनाथ मंदिर के बारे में बताएंगे।
बागेश्वर जिले के प्रसिद्ध मंदिरों में शुमार।
उत्तराखंड का यह यह मंदिर एक पौराणिक मंदिर है , जो कि भगवान शिव को समर्पित है। यह मंदिर उत्तराखंड राज्य के बागेश्वर जिले में स्थित है। बागनाथ मंदिर बागेश्वर जिले का सबसे प्रसिद्ध मंदिर है , इसी कारण बागेश्वर जिले का नाम इसी मंदिर के नाम पडा है। बागनाथ मंदिर के पास ही सरयू और गोमती नदी का संगम होता है। शैल राज हिमालय की गोद में गोमती सरयू नदी के संगम पर स्थित मार्केंडेय ऋषि की तपोभूमि के नाम से जाना जाता है। भगवान शिव के बाघ रूप में इस स्थान में निवास करने से इसे “व्याघ्रेश्वर” नाम से जाना गया , जो बाद में बागेश्वर हो गया।
बहुत पहले भगवान शिव के व्याघ्रेश्वर रूप का प्रतीक “देवालय” इस जगह पर स्थापित था , जहां बाद में एक भव्य मंदिर बना । जो कि “बागनाथ मंदिर” के नाम से जाना जाता है।
सावन में होती है भक्तों की भीड़।
बागनाथ मंदिर 7 वीं शताब्दी से ही अस्तित्व में था और वर्तमान नगरी शैली का निर्माण 1450 में चंद शासक “लक्ष्मी चंद” ने कराया था | इसके अलावा , मंदिर में देखी जाने वाली विभिन्न पत्थर की मूर्तियां 7 वीं शताब्दी ईस्वी से 16 वीं शताब्दी ईस्वी तक की हैं | इस तरह की प्रतिमाओं में उमा , महेश्वर , पार्वती , महर्षि मंदिनी एक भुखी, त्रिमुखी व चतुर्भुखी शिवलिंग, गणेश, विष्णु, सूर्य सप्वमातृका एंव शाश्वतावतार भी प्रतिभाओं को दर्शनीय बनाकर बागनाथ जी के मंदिर के निर्माण को 13 वीं शताब्दी के आस-पास का बताया गया है। भगवान शिव का आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए ‘श्रावण’ के पवित्र माह के विशेष रूप से महा शिवरात्री पर और हर सोमवार को बागनाथ मंदिर में भक्तों की एक बड़ी संख्या लगी रहती है।
ब्याघ्रेश्वर नाम के पीछे का इतिहास।
मान्यता के अनुसार जब मुनि वशिष्ठ परंपिता ब्रह्मा के कमंडल से निकली मां सरयू को ला रहे थे। जैसे ही सरयू कत्यूर घाटी में गोमती के संगम पर पहुंची तो वहां ब्रह्मकपाली के पास ऋषि मार्कंडेय तपस्या में लीन थे। ऋषि मार्कंजेय की तपस्या भंग न हो, इसलिए सरयू वहां रुक गई। देखते ही देखते जलभराव होने लगा। ऋषि वशिष्ठ ने शिवजी की आराधना की। प्रार्थना से प्रसन्न भगवान शंकर ने बाघ का रूप धारण कर मां पार्वती को गाय बना दिया। ब्रह्मकपाली के पास बाघ ने गाय पर झपटने का प्रयास किया। गाय के रंभाने से मार्कंडेय मुनि की आंखें खुल गई। वह गाय को बचाने के लिए दौड़े तो बाघ भगवान शंकर और गाय माता पार्वती के रूप में सामने आ गए। इसीलिए इस स्थान को ब्याघ्रेश्वर कहा जाने लगा।
बागेश्वर और बागनाथ मंदिर में विशेष पूजा।
बागनाथ मंदिर के महत्व को स्कंद पुराण में उल्लेख किया गया है। यहां पूजा करने के लिए पूरे वर्ष हिंदू तीर्थयात्रियों इस स्थान पर आते है। उत्तरायणी मेला हर साल जनवरी महीने में मकर संक्रांति के अवसर पर आयोजित किया जाता है। मेले के धार्मिक अनुष्ठान में संगम पर मेले के पहले दिन स्नान करने से पहले स्नान होता है। स्नान के बाद, मंदिर के अंदर भगवान शिव को पानी अर्पित करना आवश्यक माना जाता है। इस धार्मिक अनुष्ठान को तीन दिनों तक किया जाता है जिसे ‘त्रिमाघी’ के नाम से जाना जाता है।
अगर आप भी उत्तराखंड घूमने आए तो इस पवित्र मंदिर का दर्शन करना न भूलें।