पेड़-पौधे मनुष्य के लिए लाभदायक ही नहीं आवश्यक हैं। जैसे-जैसे सभ्यता का विकास हुआ, मनुष्य की रहने, खाने-पीने की आवश्यकताएँ बढ़ती गईं। पेड़-पौधे ही जीवन को झूले पर झुलाते हैं, तो पेड़-पौधे ही बुढ़ापे की लाठी बनकर सहारा प्रदान करते हैं। अनाज फल-फूल, जड़ी-बूटियाँ, ईंधन, इमारती लकड़ियाँ, जैसी वस्तुएँ हमें पेड़-पौधों से ही मिलती हैं। पेड़ पौधे हमें शुद्ध वायु प्रदान करते हैं। आज हम आपको एक ऐसे ही प्रकृति प्रेमी के बारे में बताएंगे जिन्होंने अभी तक अपने टीम के साथ मिलकर 60 हजार पेड़ पौधे लगा चुके है । आइये जानते है उनके बारे में ।
डॉ. नितिन पांडे का परिचय ।
डॉक्टर नितिन पांडे उत्तराखंड के रहने वाले है । देहरादून में एक प्राइवेट क्लिनिक चला रहे, 59 वर्षीय डॉ. नितिन ने ‘आर्म्ड फोर्स मेडिकल कॉलेज’ से अपनी एमबीबीएस की डिग्री पूरी की। इसके बाद, उन्होंने कुछ समय आर्मी में अपनी सेवाएं दी। साल 2009 में, उन्हें अपने जीभ के कैंसर के बारे में पता चला, जिसके बाद उनकी जिंदगी बिल्कुल ही बदल गयी। अपने इलाज के बाद जब वह देहरादून लौटे, तो उन्होंने देखा कि इलाके में हरियाली कम हो गई है। लोग अंधाधुंध पेड़ काट रहे थे, जिससे पर्यावरण को नुकसान पहुँच रहा था। डॉ. नितिन ने इस विषय में कुछ करने की ठानी। सबसे पहले पर्यावरण के लिए कुछ करने का फैसला किया। इस विषय पर अपने जानने वालों और कुछ दोस्तों के साथ चर्चा की और उनके साथ से ‘सिटीजन्स ग्रीन दून‘ की शुरुआत की।
पेड़-पौधों को लगाना शुरू किया।
लोगों के बीच कैंसर के बारे में जागरूकता फैलाने के साथ-साथ, डॉ. नितिन ने उन्हें पर्यावरण के प्रति संवेदनशील बनाने पर भी ध्यान दिया। उनके साथ इस मुहिम में हिमांशु अरोड़ा, अनीश लाल, रूचि सिंह, जया सिंह और लक्षा मेहता भी जुड़ी हुई हैं। ये सब लोग अलग-अलग कार्यक्षेत्रों से जुड़े हुए हैं। लेकिन ‘सिटीजन्स फॉर ग्रीन दून’ के जरिए, न सिर्फ देहरादून में पौधरोपण का काम करते हैं बल्कि पेड़ों को कटने से बचाने के लिए कोर्ट में अर्जियां भी देते हैं। टीम के अगर किसी एक सदस्य को भी कहीं कोई पेड़ कटता दिखता है तो वह तुरंत ऐसा होने से रोकते हैं।
20 हजार से अधिक पेड़ बचाए,60 हजार लगाए।

‘सिटीजन्स फॉर ग्रीन दून’ के कारण, शहर में लगभग 20 हजार पेड़ों को बचाया गया है। साथ ही, अब तक यह संगठन 60 हजार से ज्यादा पेड़-पौधे लगा चुका है। उनका पौधरोपण अभियान लगातार जारी है। आज उनके इस मुहिम के साथ, लगभग पांच हजार लोग जुड़ चुके हैं ।
बच्चों – युवाओं को जागरूक करती है टीम ।

उनकी टीम स्कूल-कॉलेजों में जाकर भी छात्रों को ज्यादा से ज्यादा पेड़-पौधे लगाने के लिए प्रेरित करती है। सिटीजन्स फॉर ग्रीन दून’ की तरफ से कराये गए एक जागरूकता अभियान प्रोग्राम के दौरान,डॉ. नितिन पांडे की मुलाकात एक युवा इंजीनियर, श्रुति कौशिक से हुई। साल 2013 में, श्रुति के साथ मिलकर ही उन्होंने ‘सहेली ट्रस्ट‘ की नींव रखी। जिसके जरिए, अब तक लगभग पांच हजार महिलाओं की शिक्षा और रोजगार के लिए मदद की जा चुकी है। डॉ. नितिन और श्रुति के मार्गदर्शन में, आज इस ट्रस्ट द्वारा महिलाओं के लिए कई तरह के प्रोग्राम चलाये जा रहे हैं।
महिलाओं के लिए काम।

महिलाओं को शिक्षा और रोजगार से जोड़ा जाता है। सहेली ट्रस्ट द्वारा चलाए जा रहे आश्रय गृह में, फिलहाल 16 लडकियां रह रही हैं। यह संख्या घटती-बढ़ती रहती है। इन सभी को मुफ्त में आश्रय, खाना, शिक्षा आदि दी जाती है और उनकी अन्य जरूरतों का भी ख्याल रखा जाता है। इसके अलावा, ट्रस्ट द्वारा ग्रामीण इलाकों में लड़कियों की शिक्षा के लिए भी अभियान चलाया जा रहा है। उनकी टीम गाँव-गाँव जाकर लड़कियों को पढ़ाती है। अगर कोई परिवार अपनी बेटी की शिक्षा के लिए साधन नहीं जुटा सकता है, तो उनकी बेटियों को किताब, कंप्यूटर कोर्स और अन्य चीजों के लिए मदद दी जाती है। उन्हें हेंडीक्राफ्ट के अलावा, यहाँ बहुत सी महिलाओं को गाड़ी चलाने की ट्रेनिंग भी दी है। कोरोना महामारी के मुश्किल वक्त में भी डॉ. नितिन और उनकी टीम, हर संभव तरीके से लोगों की मदद करने की कोशिश कर रही है।