पादप जगत में विविध प्रकार के रंग बिरंगे पौधे हैं। कुछ एक कवक पादपो को छोड़कर प्रायः सभी पौधे अपना भोजन स्वयं बना लेते हैं। जो जीव अपना भोजन खुद बनाते हैं वे पौधे होते हैं, यह जरूरी नहीं है कि उनकी जड़ें हों ही। इसी कारण कुछ बैक्टीरिया भी, जो कि अपना भोजन खुद बनाते हैं, पौधे की श्रेणी में आते हैं। संसार की अधिकांश मुक्त आक्सीजन हरे पादपों द्वारा ही दी गयी है। हरे पादप ही धरती की अधिकांश जीवन के आधार हैं। अन्न, फल, सब्जियाँ मानव के मूलभूत भोजन हैं और इनका उत्पादन लाखों वर्षों से हो रहा है। पादप हमारे जीवन में फूल और शृंगार के रूप में प्रयुक्त होते हैं।
उत्तराखंड में पादपों के विभिन्न प्रजातियां।

अगर आपकों पादप के कई प्रजातियों को देखना है तो आप उत्तराखंड आ सकते है। यहां आपको कई तरह के पादप देखने को मिलेंगे। दरअसल देहरादून जिले के चकराता में देश का पहला क्रिप्टोगैमिक गार्डन तैयार किया गया है। यहां आपको क्रिप्टोगैम पादपों की 76 प्रजातियां एक ही जगह पर देखने को मिल जाएंगी। इन 76 प्रजातियों को एक ही जगह देखना एक अच्छा अनुभव साबित होगा।
प्रदूषण मुक्त बनाती है यह प्रजातियां।
इस नए गार्डन का शुभारंभ पिछले रविवार को किया गया है। गार्डन में पाई जाने वाली कुछ प्रजातियों में औषधीय गुण भी विधमान है। यह कुल 76 प्रजातियां वातावण को प्रदूषण मुक्त बनाती है। वातावरण के लिए यह विशेषकर बहुत ही उपयोगी है।
क्रिप्टोगैम के विकास के लिए प्रसिद्ध है जंगल।
क्रिप्टोगैम का अर्थ है छिपा हुआ प्रजनन। ऐसे पौधों में कोई बीज नहीं होता और न ही फूल होते हैं। क्रिप्टोगैम में शैवाल, ब्रायोफाइट्स , लाइकेन, फर्न, कवक आदि प्रमुख समूह हैं। क्रिप्टोगैम को जीवित रहने के लिए नम परिस्थिति की आवश्यकता होती है। इन पौधों की प्रजातियां सबसे पुराने समूहों में शामिल हैं। देवबन इलाके में देवदार और ओक के प्राचीन जंगल हैं। प्रदूषण मुक्त क्षेत्र होने के कारण यह क्षेत्र क्रिप्टोगैम के विकास के लिए प्रसिद्ध है ।
वन अनुसंधान केंद्र ने तैयार किया गार्डन।

इस गार्डन को वन अनुसंधान केंद्र हल्द्वानी ने तैयार किया है। यह गार्डन समुद्र तल से करीब 2700 मीटर की ऊंचाई पर तीन एकड़ क्षेत्र में फैला हुआ है। इस गार्डन को बनाने में वन अनुसंधान केंद्र को छह लाख रुपये लगे है। क्रिप्टोगैमिक गार्डन के निर्माण का उद्देश्य पादपों की इन प्रजातियों को बढ़ावा देना और इनके महत्व के प्रति जागरूकता फैलाना है। इन प्रजातियों का पर्यावरण में बहुत बड़ा योगदान है।
उत्तराखंड में पादपों की कई प्रजातियां।

उत्तराखंड में पादपों की कई प्रजातियां है। उत्तराखंड पादपों के लिए भी विशेषकर जाना जाता है। उत्तराखंड में क्रिप्टोगैम की 539 प्रजातियां, शैवाल की 346 प्रजातियां, ब्रायोफाइट्स की 478 प्रजातियां और टेरिडोफाइट्स की 365 प्रजातियां पाई जाती हैं। क्रिप्टोगैम में शैवाल का विशेष महत्व है। इसकी कई प्रजातियों का उपयोग भोजन के रूप में किया जाता है। इनमें कार्बोहाइड्रेट, वसा, प्रोटीन और विटामिन ए, बी, सी, और ई प्रचुर मात्रा में पाया जाता है। साथ ही ये आयरन, पोटेशियम, मैग्नीशियम, कैल्शियम, मैंगनीज और जिंक जैसे खनिजों के भी अच्छे श्रोत हैं।
पादपों का कई तरह से इस्तेमाल।
प्राचीन समय से ही इन पादपों का कई तरह से प्रयोग किया जा रहा है। विभिन्न कास्मेटिक वस्तुओं, इत्र, धूप,
हवन सामग्री आदि के निर्माण में लाइकेन का उपयोग किया जाता है । प्रदूषण नियंत्रण में तो यह खूब कारगर सिद्ध होता है। उत्तराखंड में पादपों का इतना भंडार सचमुच अद्भुत है। उत्तराखंड पर्यटकों की दृष्टि से प्रसिद्ध तो है पर पादपों की दृष्टि से भी यह लोकप्रिय है।