पाम ऑयल से जुड़ी स्वास्थ्य और पोषण से संबंधित धारणाओं पर कार्यशाला का आयोजन किया।
पाम ऑयल से जुड़ी स्वास्थ्य और पोषण से संबंधित धारणाओं पर कार्यशाला का आयोजन किया।
पाम ऑयल से जुड़ी स्वास्थ्य और पोषण से संबंधित धारणाओं पर कार्यशाला का आयोजन किया।
उत्तराखंड (देहरादून) मंगलवार, 02 जुलाई 2024
सॉलिडारिडाड, एशियन पाम ऑयल एलायंस एवं द सॉल्वेंट एक्सट्रैक्टर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया द्वारा संयुक्त रूप से इंदौर में “पाम ऑयल – स्वास्थ्य और पोषण के लिए धारणाओं में बदलाव” पर कार्यशाला आयोजित की गई। कार्यशाला में पोषण विशेषज्ञ, वैज्ञानिक और खाद्य तेल उद्योग द्वारा पाम ऑयल के बहुमुखी गुणों और भारत के खाद्य तेल परिदृश्य में इसकी भूमिका पर चर्चा की गई। कार्यशाला का मुख्य फोकस पाम ऑइल के स्वास्थ्य संबंधी गुणों पर प्रकाश डालते हुए इसके बारे में फैली गई भ्रामक जानकारियों को दूर करना है।
विशेषज्ञों ने पाम ऑयल के सेवन से जुड़े संभावित स्वास्थ्य लाभों पर चर्चा की, जिसमें हृदय और मस्तिष्क स्वास्थ्य, एंटीऑक्सीडेंट गुण और आंखों की सेहत के लिए इसे अच्छा बताया गया। विशेषज्ञों ने बताया कि कच्चे पाम ऑयल में कैरोटीनॉयड बहुत अधिक मात्रा में होता है और इसमें संतुलित फैटी एसिड की संरचना होती है, साथ ही कई फाइटोन्यूट्रिएंट्स होते हैं जो हृदय रोग और कुछ कैंसर जैसी बीमारियों के जोखिम को कम करने में मदद कर सकते हैं।
कार्यक्रम में बताया गया कि कुल खाद्य तेल उपभोग की 38% से अधिक निर्भरता पाम ऑइल पर है। इस मांग को पूरा करने के लिए 2025-26 तक अतिरिक्त 0.6 मिलियन हेक्टेयर तक पाम ऑयल की खेती के क्षेत्र के विस्तार करने की योजना बनाई गई। इस विस्तार से घरेलू उत्पादन में उल्लेखनीय वृद्धि होने की उम्मीद है। संकेत है कि कच्चे पाम ऑयल का उत्पादन 2025-26 तक 1.12 मिलियन टन तक पहुँच सकता है और 2029-30 तक 2.8 मिलियन टन तक बढ़ सकता है, जो खाद्य तेल उत्पादन में भारत के आत्मनिर्भरता के लक्ष्य की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।
इस अवसर पर एशियन पाम ऑयल अलायंस के चेयरमैन अतुल चतुर्वेदी ने बताया कि दुनिया में पाम ऑयल का सबसे बड़ा आयातक होने के नाते भारत खाद्य तेल उत्पादन में आत्मनिर्भर बनने के लिए प्रतिबद्ध है। भारत में सदियों से पाम ऑयल का इस्तेमाल कई खाद्य और गैर-खाद्य उत्पादों में होता रहा है। हालांकि, हाल के वर्षों में स्वास्थ्य, पोषण और पर्यावरण पर इसके प्रभाव के बारे में भ्रामक रिपोर्ट सामने आई हैं, जिससे हमारे किसानों, खासकर छोटे किसानों को नुकसान हुआ है और हमारी अर्थव्यवस्था पर नकारात्मक असर पड़ा है। इस कार्यशाला का उद्देश्य वैज्ञानिक रूप से सटीक जानकारी प्रस्तुत करके पाम ऑयल के बारे में लोगों की धारणा को बदलना है।
डॉ. शतद्रु चट्टोपाध्याय, प्रबंध निदेशक, सॉलिडारिडाड एशिया ने मानकों के अनुसार स्वस्थ्य कृषि पद्धतियों को बढ़ावा देते बताया कि महत्वपूर्ण फसल होने के बाद भी पाम ऑयल के विषय में गलत धारणाएँ न केवल इस उद्योग की प्रतिष्ठा को नुकसान पहुँचाती हैं, बल्कि भारतीय अर्थव्यवस्था को भी प्रभावित करती हैं। छोटे किसान भी इससे प्रभावित हो रहे हैं। हमारा प्रयास इन मिथकों को दूर करने और पाम ऑयल उत्पादन और इससे होने वाली आजीविका को बढ़ावा देना है।
द सॉल्वेंट एक्सट्रैक्टर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया के अध्यक्ष श्री अजय झुनझुनवाला ने कहा कि हम भारतीय पाम ऑयल उद्योग में टिकाऊ प्रथाओं को बढ़ावा देने के लिए प्रतिबद्ध हैं। किसानों को भारतीय पाम ऑयल स्थिरता मानक अपनाने के लिए प्रोत्साहित करके, हमारा लक्ष्य यह सुनिश्चित करना है कि हमारी कृषि पद्धतियाँ पर्यावरण के अनुकूल और सामाजिक रूप से जिम्मेदार हों। हम कंपनियों से आग्रह करते हैं कि वे इन मानकों को पूरा करने वाले पाम ऑयल को खरीदकर इस पहल का समर्थन करें।
एसईए के कार्यकारी निदेशक डॉ. बीवी मेहता ने पाम की आर्थिक आर्थिक महत्व पर प्रकाश डालते हुए बताया कि “भारत द्वारा प्रतिवर्ष लगभग 9 मिलियन टन पाम ऑयल का आयात किया जाता है, जिससे साफ है कि स्थानीय स्तर पर पाम की खेती को बढ़ाने की आवश्यकता है। देश में कुल खाद्य तेल खपत में से पाम ऑयल की खपत 38% से अधिक हो गई है। सोयाबीन, सरसों और सूरजमुखी के तेलों की खपत भी उसके बाद है। खाद्य तेल उद्योग में अग्रणी होने के नाते, हम अपने किसानों को लाभ पहुंचाने और घरेलू उत्पादन को मजबूत करने के लिए पाम ऑयल के न्यूनतम विक्रय मूल्य को बढ़ाने के लिए प्रतिबद्ध हैं।”
डॉ. सुरेश मोटवानी, क्षेत्रीय वेज ऑइल प्रमुख, सोलिडारिडाड ने पाम ऑयल से बने उत्पादों की प्रदर्शनी की ओर इंगित करते हुए कहा कि यह कार्यशाला इस बात का प्रमाण है कि पाम ऑयल भारतीय रसोई का एक अभिन्न अंग है। इससे जुड़े मिथकों को दूर करके, भारत निश्चित रूप से खाद्य तेल उत्पादन में आत्मनिर्भर भारत बनाने के प्रधानमंत्री के सपने को साकार कर सकता है।
गोदरेज एग्रोवेट लिमिटेड से ऑयल पाम बिजनेस के सीईओ सौगाता नियोगी ने कहा बताया कि खाद्य तेलों का राष्ट्रीय मिशन – ऑयल पाम हमारे देश के लिए खाद्य तेल के आयात को कम करने की दिशा में एक सही कदम है। पाम 3-4 टन प्रति हेक्टेयर प्रति वर्ष उपज देने की क्षमता के साथ, अन्य वनस्पति तेल की तुलना में अधिक उपज देने वाली फसल है।इसमे गन्ना और धान जैसी अन्य फसलों की तुलना में कम पानी की आवश्यकता होती है। यह किसानों को अंतर-फसल के माध्यम से आय के वैकल्पिक स्रोत के अलावा 20 से अधिक वर्षों के लिए आय का एक सुनिश्चित स्रोत भी प्रदान करता है। इसके अतिरिक्त, फसल उगाने के लिए केवल कृषि भूमि की अनुमति होने के कारण, ऑयल पाम क्षेत्र में जैव विविधता को बढ़ाने में भी सहायता करता है।
डॉ. विजया खादेर, पूर्व आचार्य एनजी रंगा कृषि विश्वविद्यालय और पोषण विशेषज्ञ ने पाम ऑइल की गुणवत्ता पर कहा कि कई अध्ययनों से पता चलता है कि पाम ऑइल में कई पोषक तत्व पाए जाते हैं। इसी कारण से खाद्य और गैर-खाद्य दोनों उत्पादों में इसका उपयोग होता है। पाम ऑयल के बारे में कोई भी राय बनाने से पहले, यह जरूरी है कि लोग इसके गुणों के बारे में अच्छे से पढ़ें और समझे तभी वह केवल सुनी-सुनाई बातों पर भरोसा करने के बजाय सही निर्णय ले पाएंगे।