उत्तराखंड

कैल्शियम कार्बाइड आदि एजेंट्स से पकाए फलों व सब्ज़ियों से हो रही हैं कैंसर जैसी खतरनाक बीमारी।

कैल्शियम कार्बाइड आदि एजेंट्स से पकाए फलों व सब्ज़ियों से हो रही हैं कैंसर जैसी खतरनाक बीमारी।

कैल्शियम कार्बाइड आदि एजेंट्स से पकाए फलों व सब्ज़ियों से हो रही हैं कैंसर जैसी खतरनाक बीमारी।

उत्तराखंड (देहरादून) वीरवार, 22 मई 2025

आम नागरिकों में कैंसर जैसी खतरनाक बीमारियों को पैदा करने वाले कैल्शियम कार्बाइड आदि एजेंट्स को अधपके आम, केला,पपीता,को पके हुए फलों के रूप में बेचकर लोगों को मौत के मुंह में धकेलने की खतरनाक आदतों पर दून वासियों ने की रोक लगाने की मांग।

संयुक्त नागरिक संगठन द्वारा आयोजित संवाद में भारतीय खाद्य सुरक्षा और मानक प्राधिकरण द्वारा उत्तराखंड समेत सभी राज्यों को फलों को जहरीले एजेंट और सिंथेटिक रसायन लेप(कोटिंग)की खतरनाक प्रवृति पर विशेष अभियान चलाने के निर्देशो को जागरूक दून वासियों ने सामयिक स्वागत योग्य कदम बताया।

स्पेक्स संस्था के डॉक्टर ब्रजमोहन शर्मा ने उत्तराखंड में प्राधिकरण के निर्देशों के क्रियान्वयन को गंभीर चुनौती बताते हुए कहा है कि बिना स्थानीय प्रशासन,विषय विशेषज्ञ तथा आम जन के सहयोग,इस नीति की सफलता कठिन है।इनके अनुसार फलों तथा सब्जियों की उत्पादकों तथा खरीदार उपभोक्ताओं में जन जागरूकता अभियान चलाकर वैकल्पिक उपाय किए जाने जरूरी हैं।

सोशल जस्टिस फाऊंडेशन की डॉक्टर आशा लाल टम्टा का कहना था कि खतरनाक रसायनों का प्रयोग भोजन की थाली में जहर बनकर हमारे शरीर में जा रहा है।इससे हमारे और बच्चों के स्वास्थ्य पर गंभीर आघात पहुंच रहा है।हमें खाद्य पदार्थों की बनावटी चमक दमक से प्रभावित न होकर प्राकृतिक रूप से पके हुए फलों सब्जियों का प्रयोग करना होगा। इसमें सभी ग्रहणियों को अपनी ओर से पहले पहल करनी होगी।

अखिल भारतीय पूर्व सैनिक परिषद के मेजर एम एस रावत के अनुसार फलों को कृत्रिम ढंग से जल्द पकाने में प्रयोग किए जाने वाले रसायनों से एसिटिलीन जैसी हानिकारक गैस निकलती है जो आर्सेनिक और फास्फोरस जैसे हानिकारक तत्वों से युक्त होती है। ऐसे फलों को खाने से अल्सर उल्टी होती है जो लीवर और किडनी को नुकसान पहुंचती है।ऐसे फलों की सेल्फ लाइफ भी कम होती है।हमें प्राकृतिक रूप से पके फलों जो स्वादिष्ट और पौष्टिक होते हैं, उनका ही खाना चाहिए।

शताब्दी एनक्लेव विकास समिति के अध्यक्ष प्रमेंद्र सिंह बर्थवाल का कहना था कि सभी पेड़ों पर फल एक साथ नहीं पकते हैं।पके फलों को मंडियों तक पहुंचाने फिर इनके विपणन जैसी कठिनाइयों को दूर कर किसानों की समस्याओं को हल किया जा सकता है।इससे इनका आर्थिक नुकसान भी नहीं होगा और उपभोक्ताओं को भी ये आसानी से सुलभ होंगे।उत्पादकों में जागरूकता अभियान चलाकर इनको जहरीले तत्वों के प्रयोग के प्रति शिक्षित किया जा सकता है।

रोड सेफ्टी अभियान के उमेश्वर सिंह रावत के अनुसार शासन तथा प्रशासन को शिक्षण संस्थानों, सामाजिक संस्थाओं,महिला मंगल दलों में विशेष जागरूकता अभियान आयोजित कर जहरीले खाद्य पदार्थों के विरुद्ध अभियान चलाया जाना जरूरी है।सोशल मीडिया तथा प्रिंट मीडिया के माध्यम से भी आम जन को सूचित किया जा सकता है।

मैती संस्था के संस्थापक पद्मश्री कल्याण सिंह रावत का कहना था कि केंद्र सरकार द्वारा आमजन के हित में देर से उठाया गया कदम प्रासंगिक ही नहीं आवश्यक भी है।चमकदार फल और उनकी बनावटी रंगों के भ्रमजाल में फंसकर आम नागरिक अपने शरीर की प्रतिरोधक क्षमता को गवा रहे हैं।अस्पतालों में रोगियों की बढ़ती भीड़ को रोकना है तो हमें प्राकृतिक रूप से तैयार खाद्य पदार्थों के प्रयोग को बढ़ावा देना होगा।पर्यावरण संरक्षण में जुटे दिनेश सेमवाल का कहना था कि भारतीय खाद्य सुरक्षा एवं मानक प्राधिकरण के निर्देश समयानुकूल और सराहनीय है। इससे न केवल उपभोक्ताओं के स्वास्थ्य की सुरक्षा होगी बल्कि किसानों और व्यापारियों को भी प्राकृतिक ढंग से खाद्य पदार्थों को पैदा करने में प्रेरणा मिलेगी।

सिटिजन फॉर ग्रीन दून की जया सिंह का विचार था कि खाद्य सुरक्षा और मानक बिक्री पर प्रतिबंध और रोक)विनियमन 2011 पहले से ही बने हैं पर इनको धरातल पर क्रियान्वयन कराना उत्तराखंड सरकार की जिम्मेदारी है। सरकारी तंत्र को व्यापक और संसाधनों से अधिक मजबूत बनाना भी जरूरी है।जिसमें कर्तव्यनिष्ठा, ईमानदारी और जिम्मेदारी हो। भ्रष्टाचार मुक्त व्यवस्था ही आमजन के स्वास्थ्य को सुरक्षित बन सकती है।

आरटीआई क्लब के जगदंबा प्रसाद मैथानी ने सीजनवार पैदा होने वाले फलों में रसायनों के प्रयोग को कैंसर रोग का जनक बताते हुए राज्य के स्वास्थ्य विभाग को नियमों का कढ़ाई से अनुपालन सुरक्षित करने पर जोर दिया है।

संयुक्त नागरिक संगठन के डॉक्टर अजीत गैरोला ने जहरीले खाद्य पदार्थों की बिक्री पर नियमों के अंतर्गत सख्त विजिलेंस की आवश्यकता बताते हुए ऐसे फलों को मंडियों में थोक विक्रेताओं तक आमद को रोकने,खाद्य सुरक्षा की परिवर्तन इकाइयों पर जिम्मेदारी डालने की जरूरत बताई है।

न्यूवीजिन संस्था के गजेंद्र सिंह रमोला तथा उत्तराखंड पेंशनर समन्वय समिति के ठाकुर शेर सिंह के अनुसार संबंधित विषय को गंभीर बताते हुए एकजुट होकर काम करने की आवश्यकता पर जोर दिया है।उनके अनुसार शुद्ध खाद्य पदार्थ मिलना हमारा जीवन का मौलिक अधिकार है।अधिकांश फल और सब्जियों को कीटनाशक घोल में डुबोया जाता है।जब कैल्शियम कार्बाइड का प्रयोग वर्जित है तो इसके थोक और परचून विक्रेताओं पर पूर्णतया रूप लगाई जानी जनहित में जरूरी है।अगर यह खतरनाक रसायन ही सुलभ न हो तो फल उत्पादक ही इसका प्रयोग नहीं कर पाएंगे।

दून सिटीजन कौंसिल के जगमोहन मेहंदी रत्ता का कहना था कि आज फलों सब्जियों,मसालों में जहरीले रसायनों की मिलावट से भयंकर बीमारियां हो रही है। तरबूज खरबूज में इंजेक्शन लगाकर इनको मीठा और बड़ा बनाने के लिए रसायनों के इंजेक्शन लगाए जा रहे हैं। सब्जियों को हरा रंग कर ताजा दिखाने की कोशिश हो रही है। सरकारी तंत्र कार्रवाई करता भी है तो गुनहगार कानून के खामियों से बचकर निकल जाते हैं।आमजन की जागरूकता ना होना इस खतरनाक प्रवृत्ति के लिए जिम्मेदार है। इसके लिए व्यापक जनआंदोलन शुरू करना समय की मांग है।

संयुक्त नागरिक संगठन के सुशील त्यागी का कहना है कि केंद्रीय निर्देशों का उत्तराखंड में सख्ती से क्रियान्वयन होना जरूरी है। स्वास्थ्य विभाग खाद्य विभाग की सचल प्रवर्तन इकाइयों को आपेक्षित संसाधनो से युक्त बनना इसका एकमात्र उपाय है। राज्य के सभी जिलों की मंडियों के बाहर जांच समितियां को स्थाई रूप से नियुक्त कर जहरीले खाद्य पदार्थों की मौके पर ही जांच कराई जानी जरूरी है।इसके लिए भंडारण करने वाले गोदाम को भी सील किया जाना जरूरी होगा।

Team UK News

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